उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए एक बड़ी खबर है — उत्तर प्रदेश कृषि विभाग ने कस्टम हायरिंग सेंटर, कृषि ड्रोन और अन्य कृषि यंत्रों के लिए आवेदन की अंतिम तिथि 29 अक्टूबर 2025 तक बढ़ा दी है। यह फैसला उप कृषि निदेशक सुमित कुमार ने जागरण समाचार पत्र को दिए बयान में स्पष्ट किया। यह बदलाव किसानों के लिए एक बड़ा राहत है, क्योंकि कई लोग अभी तक आवेदन करने में विलंब कर रहे थे। अब उनके पास और भी समय है — और यह बात बहुत मायने रखती है, क्योंकि आधुनिक कृषि यंत्र अब सिर्फ एक सुविधा नहीं, बल्कि जीवन-यापन का जरिया बन चुके हैं।
किसानों के लिए क्या मिल रहा है?
इस योजना के तहत, किसानों को विभिन्न यंत्रों पर भारी सब्सिडी मिल रही है। कस्टम हायरिंग सेंटर के लिए 40% सब्सिडी, लेजर लैंड लेवलर और कृषि ड्रोन पर 50%, और एक खास योजना के तहत तीन कस्टम हायरिंग सेंटर पर तो 80% तक की सब्सिडी दी जा रही है। यह न सिर्फ बाजार की कीमतों को कम करता है, बल्कि छोटे किसानों को भी बड़ी मशीनों का फायदा उठाने का मौका देता है। अगर आपको लगता है कि ये सब्सिडी सिर्फ ट्रैक्टरों तक सीमित है, तो आप गलत हैं। पावर टिलर पर 1 लाख रुपये का सब्सिडी और स्ट्रैप हार्वेस्टर पर 75,000 रुपये का सब्सिडी भी उपलब्ध है।
चयन कैसे होगा? ई-लॉटरी का राज
यहां सबसे अहम बात यह है कि चयन ई-लॉटरी के माध्यम से हो रहा है। उप निदेशक कृषि अमर पाल सिंह ने बरेली में एक बैठक के दौरान स्पष्ट किया कि इस तरह से चयन करने से भ्रष्टाचार का खतरा खत्म हो जाता है। बरेली जिले में ही 17 किसानों का चयन इसी तरह से हुआ है। लोगों को यकीन दिलाने के लिए, विभाग ने टोकन कन्फर्मेशन की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है — यानी जिस किसान का नाम लॉटरी में आया, उसे एक डिजिटल टोकन मिलेगा, जिसके बाद ही अनुदान जारी किया जाएगा।
पहले आवेदन कर चुके किसानों के लिए क्या?
कई किसान इस बात को लेकर घबरा रहे हैं कि क्या उन्हें फिर से आवेदन करना होगा? नहीं। सुमित कुमार ने स्पष्ट किया कि जिन्होंने 27 जून से 12 जुलाई 2025 के बीच आवेदन किया था, उनका आवेदन अभी भी मान्य है। उन्हें दोबारा लॉगिन करने या फॉर्म भरने की जरूरत नहीं है। यह एक बड़ी बात है — क्योंकि बहुत से किसानों ने इस दौरान बहुत सारा समय और परिश्रम लगाया था। अब उनका वो परिश्रम बर्बाद नहीं होगा।
कस्टम हायरिंग सेंटर क्या है? आम आदमी के लिए समझें
अगर आपने कभी सुना है कि कोई किसान ट्रैक्टर या हार्वेस्टर किराए पर लेता है, तो वही है कस्टम हायरिंग सेंटर। ये एक ऐसा केंद्र है जहां एक ट्रैक्टर के साथ तीन-चार अन्य यंत्र — जैसे रोटावेटर, प्लांटर, थ्रेसर — एक साथ उपलब्ध होते हैं। एक छोटा किसान जिसके पास खुद का ट्रैक्टर नहीं है, वह इस केंद्र से एक दिन के लिए इन यंत्रों का इस्तेमाल कर सकता है। यह बहुत बड़ा बदलाव है — क्योंकि पहले तो ये मशीनें बड़े किसानों के हाथ में थीं, अब छोटे किसान भी उनका फायदा उठा पा रहे हैं।
ये योजना क्यों जरूरी है?
उत्तर प्रदेश में हर साल 12 करोड़ टन से ज्यादा फसल अवशेष जमा होते हैं। इन्हें जलाने से हवा खराब होती है। इसीलिए सरकार ने मैकेनाइजेशन फॉर इन-सीटू मैनेजमेंट ऑफ क्रॉप रेसिड्यू नामक योजना शुरू की है — जिसके तहत ड्रोन और खास मशीनें फसल के बचे हुए अवशेषों को जमीन में मिलाने में मदद करती हैं। यह न सिर्फ प्रदूषण कम करता है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ाता है।
अगले कदम क्या हैं?
अब विभाग इस योजना को अगले चरण में ले जाने की तैयारी कर रहा है। जल्द ही एक मोबाइल ऐप लॉन्च किया जाएगा, जिसमें किसान अपने टोकन की स्थिति, अनुदान राशि और डिलीवरी की तारीख ट्रैक कर सकेंगे। इसके साथ ही, बड़े शहरों में एक्सपर्ट टीमें नियुक्त की जाएंगी, जो किसानों को मशीनों का उपयोग सिखाएंगी। यह बहुत जरूरी है — क्योंकि बहुत से किसान ट्रैक्टर तो ले लेते हैं, लेकिन उसकी देखभाल नहीं कर पाते।
क्या ये योजना लंबे समय तक चलेगी?
एक बात स्पष्ट है — ये योजना सिर्फ एक बार की नहीं है। यह सब मिशन ऑन एग्रीकल्चर मैकेनाइजेशन (SMAM) के तहत चल रही है, जो केंद्र सरकार की एक लंबी अवधि की पहल है। ट्रैक्टर या कंबाइन हार्वेस्टर खरीदने वाले किसान 10 साल बाद ही दुबारा अनुदान पर खरीद सकेंगे — इससे पता चलता है कि सरकार इसे स्थायी बनाना चाहती है। यह एक ऐसा बदलाव है, जो सिर्फ एक साल के लिए नहीं, बल्कि अगले दशक के लिए भी किसानों के भविष्य को तय करेगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
क्या मुझे अगर पहले आवेदन कर चुका हूँ तो फिर से आवेदन करना होगा?
नहीं, अगर आपने 27 जून से 12 जुलाई 2025 के बीच कृषि ड्रोन, कस्टम हायरिंग सेंटर या अन्य यंत्रों के लिए आवेदन किया था, तो आपका आवेदन अभी भी वैध है। आपको दोबारा आवेदन करने की जरूरत नहीं है। विभाग ने स्पष्ट किया है कि इन आवेदनों को नए अंतिम तिथि के साथ जोड़ दिया गया है।
कृषि ड्रोन के लिए कितनी सब्सिडी मिलेगी?
कृषि ड्रोन के लिए 50% सब्सिडी उपलब्ध है। यह ड्रोन केवल फसल की छिड़काव नहीं, बल्कि मिट्टी का विश्लेषण और फसल की स्थिति का निरीक्षण करने में भी मदद करता है। एक औसत ड्रोन की कीमत लगभग 5 लाख रुपये है, जिसका आधा हिस्सा सरकार वहन करेगी।
कस्टम हायरिंग सेंटर में कौन-से यंत्र शामिल होते हैं?
एक कस्टम हायरिंग सेंटर में आमतौर पर एक ट्रैक्टर, एक रोटावेटर, एक प्लांटर और एक हार्वेस्टर शामिल होते हैं। इनका उपयोग एक गांव के कई किसान मिलकर कर सकते हैं। यह छोटे किसानों के लिए एक बड़ी बचत है, क्योंकि अलग-अलग मशीनें खरीदने की जगह वे इन्हें किराए पर ले सकते हैं।
क्या ये सब्सिडी बिना जमीन के किसानों को भी मिलेगी?
हां, अगर कोई किसान जमीन का मालिक नहीं है लेकिन खेती करता है (जैसे किरायेदार किसान), तो वह भी आवेदन कर सकता है। विभाग के नियमानुसार, जमीन का दस्तावेज नहीं, बल्कि खेती करने का प्रमाण जरूरी है — जैसे कि खेती का रिकॉर्ड या जिला प्रशासन की ओर से जारी प्रमाणपत्र।
आवेदन कहां करें और क्या दस्तावेज चाहिए?
आवेदन केवल https://agridarshan.up.gov.in पर ही संभव है। आवश्यक दस्तावेजों में आधार कार्ड, खेती का प्रमाण, बैंक खाता विवरण और निवास प्रमाणपत्र शामिल हैं। फोटोग्राफ और हस्ताक्षर भी अपलोड करने होंगे। इस वेबसाइट पर सभी निर्देश हिंदी में उपलब्ध हैं।
क्या ये योजना दूसरे राज्यों में भी चल रही है?
हां, यह योजना भारत सरकार की सब मिशन ऑन एग्रीकल्चर मैकेनाइजेशन (SMAM) के तहत सभी राज्यों में लागू है, लेकिन सब्सिडी की दर राज्य के अनुसार अलग होती है। उत्तर प्रदेश में यह दर देश के अन्य राज्यों की तुलना में अधिक लाभदायक है — खासकर कस्टम हायरिंग सेंटर के लिए 80% सब्सिडी के साथ।